Harela

क्या आपने मनाया हरेला ? जानिए इस पर्व के 5 चमत्कारी फायदे!

Harela क्या है?

Harela उत्तराखंड का एक पारंपरिक त्योहार है जिसे मुख्य रूप से कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्र में बड़े हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। यह पर्व खेती, प्रकृति और हरियाली से जुड़ा हुआ है। Harela शब्द संस्कृत के “हरियाली” से लिया गया है, जिसका अर्थ होता है हरा या हरापन

यह त्यौहार श्रावण माह की कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी तिथि को मनाया जाता है और इसे हरियाली का प्रतीक पर्व भी कहा जाता है।


🏛️ Harela का ऐतिहासिक महत्व

Harela की शुरुआत प्राचीन कृषक सभ्यता से जुड़ी हुई है। यह त्यौहार न सिर्फ एक धार्मिक अनुष्ठान है, बल्कि यह किसानों के लिए नई फसल की बुआई की शुरुआत का प्रतीक भी है।

पुराने समय में राजा-महाराजा भी अपने राज्य में Harela को उत्सव की तरह मनाते थे ताकि प्रजा खेती के मौसम की शुरुआत खुशहाल तरीके से कर सके।


🎉 Harela त्यौहार कैसे मनाया जाता है?

Harela को मनाने की प्रक्रिया विशेष और सांस्कृतिक रूप से समृद्ध होती है। इसे कई दिनों की तैयारी के साथ मनाया जाता है:

🌾 1. बीज बोना:

  • Harela से 9 या 10 दिन पहले मिट्टी से भरे एक छोटे बर्तन में धान, गेहूं, मक्का, उड़द, सरसों आदि के बीज बोए जाते हैं।
  • इसे “हर्यार” बोना कहते हैं।

🌞 2. देखभाल:

  • इन बीजों को रोज़ाना पानी देकर धूप और छांव में रखा जाता है ताकि अंकुरित हो सकें।

🌿 3. त्योहार का दिन:

  • Harela के दिन इन हरे-भरे अंकुरों को काटकर परिवार के सभी बड़े-बुजुर्गों द्वारा बच्चों के सिर पर लगाया जाता है
  • इसे लगाने का उद्देश्य होता है: सुख-शांति, स्वास्थ्य और समृद्धि की कामना

🎶 4. पारंपरिक गीत और नृत्य:

  • Harela पर महिलाएं पारंपरिक “झोड़ा” और “चांचरी” नृत्य करती हैं।
  • बच्चे और युवा रंग-बिरंगे परिधान पहनकर पारंपरिक गीत गाते हैं।
Harela

🌍 हरेला के पर्यावरणीय संदेश

हरेला केवल एक पर्व नहीं है, यह पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक है। इस दिन गांवों में पेड़ लगाना, सफाई अभियान, और जल संरक्षण जैसे कई सामाजिक कार्य किए जाते हैं।

सरकारी और गैर-सरकारी संगठन भी इस दिन वृक्षारोपण अभियान चलाते हैं ताकि लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक किया जा सके।


🏔️ उत्तराखंड में हरेला की भूमिका

उत्तराखंड में हरेला को “हरियाली तीज”, “कृषक पर्व”, और “प्रकृति पूजन दिवस” के रूप में भी जाना जाता है। यह त्यौहार वहां की संस्कृति, परंपरा और प्रकृति प्रेम का परिचायक है।

विशेष रूप से स्कूलों और कॉलेजों में वृक्षारोपण, रंगोली प्रतियोगिता, और पोस्टर मेकिंग जैसे आयोजन होते हैं।

READ MORE – उत्तराखंड के प्रमुख पारंपरिक त्योहार


हरेला पर्व उत्तर भारत, विशेषकर उत्तराखंड में बड़ी श्रद्धा और उल्लास से मनाया जाने वाला एक पारंपरिक पर्व है। यह मुख्यतः हरियाली, पर्यावरण संरक्षण और प्रकृति से जुड़ा पर्व है। हरेला पर्व श्रावण मास की शुरुआत (कर्क संक्रांति) पर मनाया जाता है। यह केवल एक धार्मिक पर्व ही नहीं, बल्कि इसके पीछे कई स्वास्थ्य, पर्यावरण और सामाजिक फायदे भी छिपे हैं।

यहाँ जानिए हरेला पर्व के 5 चमत्कारी फायदे:


🌿 1. पर्यावरण संरक्षण और वृक्षारोपण को बढ़ावा

हरेला पर्व पर परंपरागत रूप से पेड़-पौधे लगाए जाते हैं। यह लोगों में हरियाली और वृक्षारोपण के प्रति जागरूकता बढ़ाता है, जिससे पर्यावरण का संतुलन बना रहता है और वायु की गुणवत्ता में सुधार होता है।


🧘‍♂️ 2. शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य में सुधार

हरेला के अवसर पर खेतों में काम करना, पौधे लगाना, मिट्टी से जुड़ना – यह सब तनाव कम करता है, मन को शांति देता है और शरीर को प्राकृतिक व्यायाम भी मिलता है। मिट्टी में मौजूद “माइकोबैक्टीरिया” मानसिक स्वास्थ्य को भी लाभ पहुंचाते हैं।


👨‍👩‍👧‍👦 3. सामाजिक एकता और पारिवारिक जुड़ाव

हरेला सामूहिक रूप से मनाया जाता है। परिवार व समाज के लोग एकत्र होकर पूजा-पाठ, गीत-संगीत व वृक्षारोपण करते हैं। इससे सामाजिक एकता और आपसी भाईचारा बढ़ता है।


🌱 4. कृषि और फसल चक्र की शुरुआत का प्रतीक

यह पर्व किसान समुदाय के लिए बहुत महत्वपूर्ण है, क्योंकि यह नई फसल की बुआई और मॉनसून की शुरुआत का प्रतीक होता है। इससे किसान अपनी कृषि परंपराओं के प्रति जागरूक रहते हैं।


🪔 5. आध्यात्मिक उन्नति और शुभता

हरेला पर्व पर देवी-देवताओं की पूजा, विशेषकर भगवती पार्वती और भगवान शिव की आराधना की जाती है। यह मन को अध्यात्म की ओर ले जाता है और परिवार में शुभता व समृद्धि का संचार करता है।


🙋‍♀️ FAQs about Harela

Q1. हरेला कब मनाया जाता है?

Ans: हरेला श्रावण मास की त्रयोदशी को मनाया जाता है, जो आमतौर पर जुलाई के मध्य में आता है।

Q2. हरेला पर्व का मुख्य उद्देश्य क्या है?

Ans: हरेला खेती की शुरुआत, हरियाली के स्वागत और पर्यावरण संरक्षण का प्रतीक है।

Q3. क्या हरेला सिर्फ उत्तराखंड में ही मनाया जाता है?

Ans: मुख्य रूप से यह पर्व उत्तराखंड के कुमाऊं और गढ़वाल क्षेत्र में मनाया जाता है, लेकिन अब इसकी लोकप्रियता अन्य राज्यों में भी बढ़ रही है।

Q4. क्या हरेला में पेड़ लगाना जरूरी होता है?

Ans: यह अनिवार्य नहीं है, लेकिन परंपरा और पर्यावरणीय महत्व के कारण इस दिन पेड़ लगाना शुभ माना जाता है।


📌 निष्कर्ष

हरेला केवल एक पारंपरिक त्योहार नहीं, बल्कि प्रकृति, संस्कृति और सामुदायिक चेतना का प्रतीक है। यह पर्व न केवल हमें खेती और हरियाली से जोड़ता है, बल्कि पर्यावरण के प्रति हमारी जिम्मेदारी को भी याद दिलाता है।

आज के युग में जब पर्यावरण संकट गहराता जा रहा है, ऐसे में हरेला जैसे पर्व हमें प्रकृति के प्रति सम्मान और संवेदनशीलता की सीख देते हैं।

Leave a Comment

Your email address will not be published. Required fields are marked *

Scroll to Top