Green Cess: पर्यावरण संरक्षण के लिए उत्तराखंड सरकार का नया टैक्स
उत्तराखंड सरकार ने हाल ही में एक महत्वपूर्ण निर्णय लिया है — राज्य में Green Cess लगाने का। यह टैक्स उन गतिविधियों पर लागू किया जाएगा जो पर्यावरण को नुकसान पहुंचाती हैं। सरकार का उद्देश्य इस कर से मिलने वाली राशि को प्रदूषण नियंत्रण, वृक्षारोपण, और हरित विकास परियोजनाओं में निवेश करना है।
Green Cess का विचार नया नहीं है, लेकिन उत्तराखंड ने इसे पहाड़ी राज्य की जरूरतों के अनुरूप लागू करने का साहसिक कदम उठाया है। यह कदम भारत के अन्य राज्यों के लिए भी एक उदाहरण बन सकता है।
उत्तराखंड राज्य में प्रवेश करने वाले अन्य राज्यों के वाहनों के लिए Green Cess लागू करने का फैसला किया है। यह शुल्क दिसंबर 2025 से लागू होगा, और इसका उद्देश्य बढ़ते वाहन प्रदूषण को नियंत्रित करना तथा पर्यावरण संरक्षण के लिए आवश्यक संसाधन जुटाना है।
Green Cess क्या है?
Green Cess एक प्रकार का “पर्यावरणीय कर (Environmental Tax)” है, जो उन लोगों, कंपनियों या संगठनों पर लगाया जाता है जो पर्यावरण को प्रत्यक्ष या अप्रत्यक्ष रूप से प्रदूषित करते हैं।
इस टैक्स से मिलने वाला राजस्व पर्यावरण सुधार और जलवायु संतुलन के प्रयासों में खर्च किया जाता है।
सरल शब्दों में, Green Cess का मतलब है — “जो प्रदूषण फैलाएगा, वही सफाई की जिम्मेदारी भी निभाएगा।”
Green Cess की दर
- यह टैक्स 1 दिसंबर 2025 से लागू होगा।
- यह उन वाहनों पर लागू होगा जिनका पंजीकरण उत्तराखंड राज्य में नहीं है, यानी “out-of-state” वाहनों पर।
- टैक्स की दर वाहन के प्रकार तथा उसपर डाली जा सकने वाली लोड-क्षमता पर निर्भर होगी। उदाहरणस्वरूप: छोटी पिकेट मोटर कार पर ₹80 तक, हल्के माल वाहन पर ₹250, बसों पर ₹140, ट्रकों पर ₹120-₹700 तक का शुल्क हो सकता है।

उत्तराखंड में Green Cess लागू करने की जरूरत क्यों पड़ी?
उत्तराखंड एक पहाड़ी राज्य है, जिसकी पहचान उसकी नदियों, वनों और स्वच्छ वातावरण से है। लेकिन पिछले कुछ वर्षों में:
- तेजी से बढ़ते निर्माण कार्य
- पर्यटन की भीड़
- और बढ़ता वाहन प्रदूषण
ने राज्य के पर्यावरणीय संतुलन को प्रभावित किया है।
सरकार का मानना है कि Green Cess से एक “Green Fund” तैयार किया जा सकेगा, जिससे पर्यावरणीय प्रोजेक्ट्स को सीधी मदद मिलेगी।
किन पर लगाया जाएगा Green Cess?
उत्तराखंड सरकार की योजना के अनुसार, यह कर विभिन्न क्षेत्रों में लागू किया जा सकता है, जैसे:
- वाहन कर (Vehicle Entry/Usage):
राज्य में प्रवेश करने वाले बाहरी वाहनों से Green Cess लिया जा सकता है। - निर्माण परियोजनाएँ (Construction Projects):
बड़े भवनों, होटलों या मॉल के निर्माण पर यह टैक्स लग सकता है। - औद्योगिक इकाइयाँ (Industrial Units):
जो फैक्ट्रियां प्रदूषण फैलाती हैं, उनसे Green Cess वसूला जाएगा। - खनन और विकास कार्य (Mining & Development Works):
पर्यावरणीय प्रभाव वाले विकास प्रोजेक्ट्स भी इसके दायरे में आ सकते हैं।

Green Cess से मिलने वाले लाभ
🌱 1. पर्यावरण संरक्षण को बढ़ावा
इस टैक्स से मिलने वाला फंड जंगलों की सुरक्षा, पौधारोपण और नदियों की सफाई जैसे कार्यों में खर्च किया जाएगा।
💨 2. वायु गुणवत्ता में सुधार
वाहन और औद्योगिक प्रदूषण पर नियंत्रण पाने में मदद मिलेगी, जिससे हवा की गुणवत्ता बेहतर होगी।
🌞 3. नवीकरणीय ऊर्जा को प्रोत्साहन
सरकार इस राशि से सोलर और हाइड्रो एनर्जी जैसे स्वच्छ ऊर्जा स्रोतों को बढ़ावा दे सकेगी।
💼 4. रोजगार सृजन
हरित परियोजनाओं से स्थानीय युवाओं को रोजगार के अवसर भी मिलेंगे।
Green Cess से मिलने वाले राजस्व का उपयोग
सरकार इस कर से मिलने वाली राशि को निम्नलिखित क्षेत्रों में खर्च करने की योजना बना रही है:
- जल स्रोतों और झीलों की सफाई
- पेड़ लगाने और जंगलों के पुनरोद्धार
- वायु और ध्वनि प्रदूषण की निगरानी
- पर्यावरण शिक्षा और जागरूकता कार्यक्रम
सरकार और विशेषज्ञों की राय
मुख्यमंत्री ने कहा है कि “Green Cess कोई बोझ नहीं, बल्कि भविष्य के लिए निवेश है।”
पर्यावरण विशेषज्ञों का मानना है कि यदि यह टैक्स पारदर्शी तरीके से लागू किया गया तो यह राज्य के Eco Balance को बनाए रखने में मील का पत्थर साबित होगा।
कई राज्यों में पहले से ऐसे टैक्स लागू हैं, जैसे दिल्ली में Environment Compensation Charge (ECC) और महाराष्ट्र में Green Tax। उत्तराखंड का मॉडल इनसे प्रेरित लेकिन स्थानीय जरूरतों पर केंद्रित है।
जनता की प्रतिक्रिया
सामान्य जनता और वाहन मालिकों के बीच इस निर्णय को लेकर मिश्रित प्रतिक्रियाएँ हैं।
- कुछ लोगों का मानना है कि यह टैक्स पर्यावरण की रक्षा के लिए जरूरी है।
- जबकि कुछ इसे अतिरिक्त आर्थिक बोझ मान रहे हैं।
फिर भी, अधिकतर लोग इस बात से सहमत हैं कि अगर इससे राज्य का पर्यावरण सुरक्षित रहेगा, तो यह टैक्स उचित है।
भारत के अन्य राज्यों के लिए एक मिसाल
उत्तराखंड का यह निर्णय अन्य राज्यों को भी प्रेरित कर सकता है। विशेष रूप से हिमाचल प्रदेश, सिक्किम और मेघालय जैसे पर्यावरण-संवेदनशील राज्यों में Green Cess Model अपनाया जा सकता है।
निष्कर्ष
Green Cess उत्तराखंड सरकार की एक दूरदर्शी पहल है जो पर्यावरण संरक्षण और सतत विकास को एक साथ जोड़ती है।
अगर इसे सही तरीके से लागू किया गया, तो यह न केवल राज्य बल्कि पूरे देश के लिए एक हरित उदाहरण बन सकता है।
हम सबकी जिम्मेदारी है कि हम इस प्रयास में सहयोग करें ताकि आने वाली पीढ़ियों को स्वच्छ और स्वस्थ वातावरण मिल सके।
❓ FAQs: Green Cess Uttarakhand
Q1. Green Cess क्या है?
Green Cess एक पर्यावरणीय टैक्स है जो प्रदूषण फैलाने वाली गतिविधियों से वसूला जाता है ताकि पर्यावरण संरक्षण के लिए धन जुटाया जा सके।
Q2. यह टैक्स किन पर लगेगा?
यह टैक्स मुख्य रूप से औद्योगिक इकाइयों, निर्माण परियोजनाओं, और राज्य में प्रवेश करने वाले वाहनों पर लागू होगा।
Q3. Green Cess से मिलने वाली राशि का उपयोग कैसे होगा?
इससे मिलने वाला राजस्व वृक्षारोपण, जल स्रोत संरक्षण, और प्रदूषण नियंत्रण अभियानों में खर्च किया जाएगा।
Q4. क्या यह टैक्स आम जनता पर असर डालेगा?
सीधे तौर पर नहीं, लेकिन वाहनों या निर्माण कार्यों की लागत में मामूली बढ़ोतरी हो सकती है।
Q5. क्या अन्य राज्यों में भी Green Cess लागू है?
हाँ, दिल्ली और महाराष्ट्र जैसे राज्यों में पहले से समान प्रकार के पर्यावरणीय टैक्स लागू हैं।



