🌸 Aja Ekadashi 2025: तिथि, महत्व, इतिहास, व्रत कथा और पूजन विधि
🕉️ प्रस्तावना
हिंदू धर्म में एकादशी तिथि का बहुत बड़ा महत्व माना जाता है। वर्षभर में 24 एकादशियाँ आती हैं और हर एकादशी की अपनी अलग विशेषता होती है। उन्हीं में से एक है अजा एकादशी। यह भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को आती है और भगवान विष्णु को समर्पित मानी जाती है। मान्यता है कि अजा एकादशी व्रत करने से जन्म-जन्मांतर के पापों का नाश होता है और व्यक्ति मोक्ष की प्राप्ति करता है। यही कारण है कि इसे मोक्ष प्रदायिनी एकादशी भी कहा गया है।
📅 Aja Ekadashi 2025 तिथि और शुभ मुहूर्त
- तिथि प्रारंभ: 26 अगस्त 2025 (मंगलवार) प्रातः 09:20 बजे
- तिथि समाप्त: 27 अगस्त 2025 (बुधवार) प्रातः 07:10 बजे
- पारण का समय (व्रत खोलना): 27 अगस्त को सूर्योदय के बाद, द्वादशी तिथि में।
👉 पंचांग के अनुसार तिथि और मुहूर्त में थोड़ा-बहुत अंतर स्थानानुसार हो सकता है।
🌿 Aja Ekadashi का महत्व
अजा एकादशी को पापों के नाश और मोक्ष प्राप्ति की तिथि माना गया है। धार्मिक मान्यता है कि इस दिन व्रत करने से जीवन के कष्ट दूर होते हैं और परिवार में सुख-समृद्धि आती है।
- “Aja” का अर्थ है — “जो कभी पैदा नहीं हुआ” या “अनन्त”।
- इस दिन उपवास और पूजन करने से पितृदोष समाप्त होता है।
- जो लोग आर्थिक तंगी या मानसिक तनाव से जूझ रहे हैं, उनके लिए यह व्रत विशेष फलदायी माना गया है।
- Aja Ekadashi का पालन करने से विष्णु जी की कृपा से असंभव कार्य भी संभव हो जाते हैं।

📖 Aja Ekadashi का इतिहास और व्रत कथा
धार्मिक ग्रंथों में वर्णित कथा के अनुसार अयोध्या नरेश राजा हरिश्चंद्र सत्य और धर्म के पालन के लिए प्रसिद्ध थे। लेकिन भाग्य के विपरीत एक समय ऐसा आया जब उन्हें अपना राज्य, राजपाट, पत्नी और पुत्र सब कुछ खोना पड़ा। मजबूरी में राजा हरिश्चंद्र श्मशान घाट में डोम के दास बनकर रहने लगे।
उनकी जीवन स्थिति बहुत दुखद थी। तभी एक दिन महर्षि गौतम वहां आए और उन्होंने राजा को Aja Ekadashi व्रत करने का उपदेश दिया। राजा हरिश्चंद्र ने श्रद्धा और नियमों के साथ यह व्रत किया। व्रत के प्रभाव से उनके सारे पाप नष्ट हो गए और उन्हें अपना राज्य, परिवार और सम्मान वापस मिल गया।
👉 इस कथा से यह संदेश मिलता है कि Aja Ekadashi व्रत से पाप नष्ट होकर जीवन में धर्म और सत्य की पुनः स्थापना होती है।
🪔 Aja Ekadashi व्रत विधि (Rituals of Aja Ekadashi)
Aja Ekadashi व्रत का पालन करने के लिए निम्नलिखित विधि अपनाई जाती है:
- प्रातः ब्रह्म मुहूर्त में उठकर स्नान करें और स्वच्छ वस्त्र पहनें।
- घर या मंदिर में भगवान विष्णु की प्रतिमा या तस्वीर स्थापित करें।
- गंगाजल से शुद्धिकरण कर तुलसी पत्र, पीले फूल और धूप-दीप अर्पित करें।
- विष्णु सहस्रनाम या “ॐ नमो भगवते वासुदेवाय” मंत्र का जप करें।
- व्रतधारी को पूरे दिन फलाहार करना चाहिए और अनाज से परहेज करना चाहिए।
- रात्रि को जागरण करें और विष्णु भक्ति में समय बिताएं।
- अगले दिन द्वादशी तिथि को ब्राह्मण भोजन कराकर व्रत का पारण करें।
✨ Aja Ekadashi के लाभ
- जन्म-जन्मांतर के पापों से मुक्ति।
- पितरों की आत्मा को शांति।
- जीवन में सुख-समृद्धि और मानसिक शांति।
- आर्थिक संकट और कष्टों का अंत।
- मोक्ष की प्राप्ति और आत्मिक उन्नति।
🔱 वैज्ञानिक और सामाजिक दृष्टिकोण
धार्मिक मान्यताओं के साथ-साथ Aja Ekadashi का वैज्ञानिक महत्व भी है। व्रत के दौरान फलाहार और उपवास शरीर को डिटॉक्स करने का कार्य करता है। इससे पाचन तंत्र को आराम मिलता है और मन एकाग्र होता है।
सामाजिक दृष्टि से यह व्रत परिवार और समाज में अनुशासन, संयम और भक्ति का वातावरण बनाता है।
📌 Aja Ekadashi करने योग्य और वर्जित कार्य (Dos & Don’ts)
✅ करने योग्य:
- स्नान, दान और जप।
- फलाहार और भगवान विष्णु की पूजा।
- गरीबों और ब्राह्मणों को भोजन कराना।
❌ वर्जित:
- अनाज, मांस, शराब, प्याज और लहसुन का सेवन।
- झगड़ा, आलस्य और नकारात्मक विचार।
- व्रत तोड़ना या नियमों का उल्लंघन।
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🙋♀️ FAQ – Aja Ekadashi
Q1. Aja Ekadashi कब आती है?
👉 यह भाद्रपद मास के कृष्ण पक्ष की एकादशी को आती है।
Q2. Aja Ekadashi व्रत का मुख्य लाभ क्या है?
👉 पापों का नाश और मोक्ष की प्राप्ति।
Q3. क्या महिलाएं और वृद्ध यह व्रत कर सकते हैं?
👉 हाँ, श्रद्धा और सामर्थ्य के अनुसार सभी कर सकते हैं।
Q4. Aja Ekadashi व्रत में क्या नहीं खाना चाहिए?
👉 अनाज, मांस, लहसुन और प्याज का सेवन वर्जित है।
Q5. Aja Ekadashi व्रत का धार्मिक महत्व क्या है?
👉 यह व्रत पितृदोष से मुक्ति, पापों के नाश और विष्णु कृपा प्राप्त करने का मार्ग है।
📖 निष्कर्ष
Aja Ekadashi केवल एक धार्मिक तिथि नहीं बल्कि यह आत्मिक शुद्धि, मोक्ष प्राप्ति और विष्णु भक्ति का पवित्र अवसर है। इस दिन श्रद्धा से उपवास करने और भगवान विष्णु की आराधना करने से जीवन के सभी संकट दूर होते हैं और व्यक्ति को आत्मिक शांति तथा परमधाम की प्राप्ति होती है।